शिक्षकों व पाठ्यक्रमों में गुणवत्ता लाना होगी

वैश्विक प्रतिस्पर्धा के इस युग मेंें यह सबसे अहम यह है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली और ज्ञान के  ढांचे में योजनाबद्ध परिवर्तन लाएं, ताकि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के  लिए एक जैसी शिक्षा प्रणाली विकसित हो। इसी से  नवीनता और उद्यमिता को भी प्रोत्साहन मिलेगा। भारत में उच्चतर शिक्षा का मौजूदा स्तर बहुत उम्मीदें जगाने वाला नहीं है। उच्च शिक्षा में साधारण सकल दाखिला अनुपात और देश में शोध की गुणवता स्तर में आई गिरावट हमारी शिक्षा प्रणाली में सुधार की प्रक्रिया और रफ्तार पर सवालिया निशान लगाती है। उच्च शिक्षा में भारत का सकल दाखिला अनुपात महज 11 फीसद है, जो विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। उनके  अध्ययन के  अनुसार शोध के  क्षेत्र में 1988-93 के  दौरान चीन की हिस्सेदारी 1.5 फीसद थी। इसके  बाद आंकड़ों के  मुताबिक उसने एक बड़ी छलांग लगाकर अपनी हिस्सेदारी 1999-2008 में 6.2 फीसद तक पहुंचा दी। वहीं भारत 1988-1993 में 2.5 फीसद की हिस्सेदारी के  साथ चीन से बेहतर स्थिति में था। मगर इसके  बाद भारत की रफ्तार निराशाजनक रुप से धीमी हो गई। 1999-2008 में भारत ने अपनी हिस्सेदारी में मामूली इजाफा कर आंकड़ा 2.6 फीसद तक पहुंचाया।

  हमें यह समझना होगा कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा के  इस दौर में उच्च शिक्षा का उद्देश्य शिक्षित करने के  साथ कुशल काम के  लिए तैयार मानव शक्ति  का पुल बनाना है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कई ऐसे सवाल है जिनके बारे में हमें जल्द से जल्द सोचने की जरुरत है। अगर ध्यान से देखा जाए तो हमें अपनी पूरी सोच को बदलना होगा। वर्तमान में हम इन प्रश्नों से जूझ रहे है :

1/ क्या उच्च शिक्षा को इतना आसान बना दिया जाए कि कोई विद्यार्थी उसमें प्रवेश पा सके?

2/ क्या हमें अपने देश के आर्थिक, सामाजिक जरुरतों को लेकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में परिर्वतन करने की जरुरत नहीं है?

3/ क्या उच्च शिक्षा के क्षेत्र को महंगा करने की जरुरत है ?

4/ क्या हमारे पास ऐसे गुणवत्ता वाले शिक्षक है जो बदलती दुनिया के अनुरुप ज्ञान को लगातार प्राप्त कर रहे है?

5/ क्या उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना संजोने वालेे विद्यार्थियों की गुणवत्ता का स्तर उतना है जितना उच्च शिक्षा के लिए जरुरी है?

6/ क्या हमारी उच्च शिक्षा प्रणाली बाजार कौशल की जरुरतों से मेल खाती है?

7/ क्या हमारे संस्थान गुणवत्ता के साथ शोध के लिए सुविधाएं उपलब्ध करवाने में सक्षम है?

ढांचागत खामियों को दूर करना होगा

  उच्च शिक्षा की बात है तब उसके पहले हमें कॉलेज शिक्षा की ओर भी ध्यान देना होगा। आज भी एक मध्यमवर्गीय परिवार की स्थिति यह है कि बच्चों को उनके पसंद के पाठ्यक्रम की अपेक्षा उस पाठ्यक्रम में प्रवेश लेना पड़ता है, जिसमें पैसा हो या सम्मान। निश्चित रुप से इसे समाप्त करने में अभी समय लगेगा, पर कम से कम ढांचागत खामियों को दूर किया ही जा सकता है। देश में आज भी उच्च शिक्षा की बात की जाती है तब आईआईटी आईआईएम को मानक माना जाता है आखिर क्यों? कारण साफ है कि उनकी कार्यप्रणाली ढांचागत सुविधाओं की बराबरी ओर कोई संस्थान नहीं कर पाया है। इतने वर्षों तक लगातार गुणवत्ता देने वाली प्रक्रिया को इन संस्थाओं ने अपनाया। यहीं नहीं प्रवेश के लिए भी कड़ी परीक्षा ली जाती है।

  कुछ वर्षों में निजी संस्थानों को अनुमति देने के साथ-साथ प्रवेश को आसान कर दिया और निजी संस्थानों की ढांचागत सुविधाओं की अनदेखी भी की। हमें संस्थाओं के फिर भले ही वह शासकीय हो या फिर निजी उनके ढांचागत खामियों को दूर करना होगा। उन्हें संसाधन जुटाने के लिए कहना होगा या फिर उनकी मदद करनी होगी। एक तयशुदा कार्यक्रम के तहत इन संस्थाओं का एजुयुकेशन ऑडिट कर इन्हें सुधार करने के लिए समय देना होगा। ऑडिट टीम में सरकारी कर्मचारी होकर इस टीम में अलग-अलग विधाओं के लोग होंगे जिनमें कुछ विदेशी विशेषज्ञ भी होने चाहिए। इससे संस्थाओं को यह जानने का मौका मिलेगा कि आखिर उनसे चूक कहां हो रही है।

   उच्च शिक्षा संस्थानों के  लिए राष्ट्र्रीय मान्यता प्राधिकरण की बात हो रही हैै, जो स्वतंत्र निकाय होगा तथा इसमें शिक्षा जगत के  विशेषज्ञ सदस्य होंगे। संस्थानों को मान्यता प्रदान करने वाली एजेंसियों को इसमें पंजीकरण कराना होगा। इससे उच्च शिक्षण संस्थानों को उनकी गुणवत्ता के  हिसाब से ग्रेड दिए जाएंगे। इससे छात्रों के  सामने अच्छे शिक्षण संस्थानों को चुनने का विकल्प होगा। यह बात ठीक है, पर वर्तमान में जो संस्थाएं है उनका क्या होगा? क्या इससे भ्रष्टाचार को ओर भी बढ़ावा नहीं मिलेगा? अपने संस्थान का ग्रेड़ बढ़वाने के लिए प्रयत्न होंगे और इसके परिणाम घातक भी हो सकते है! इसके अलावा शैक्षणिक न्यायाधिकरण स्थापना की बात भी है। यह अच्छी बात है पर इसमें भी पारदर्शिता काफी जरुरी होगी।

कहां से लाएंगे शिक्षक?

  यह सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है कि देश में लगातार गुणवत्ता वाले शिक्षकों की कमी आती जा रही है। दूसरी ओर देश को 2020 तक सकल नामांकन अनुपात का 20-25 प्रतिशत  प्राप्त करने के लिए 3000 विश्वविद्यालयों और 50000 महाविद्यालयों की आवश्यकता होगी। इस विस्तार को सही दिशा में चलाने के  लिए हमें उच्च शिक्षा के  क्षेत्र में सरंचनात्मक तथा पाठक्रम के स्तर पर परिवर्तन की आवश्यकता है, यह गुणवत्ता वाले शिक्षकों के बिना संभव नहीं। हम अभी की बात कर रहे हैं, पर जब देश में विदेशी विश्वविद्यालय कदम रखेंगे तब परिस्थितियों में ओर भी परिवर्तन आएंगे। अच्छे शिक्षक ज्यादा वेतन के लालच में निश्चित रुप से विदेशी विश्वविद्यालयों की ओर रुख करेंगे। आईआईटी, आईआईएम, मेडिकल, इंजीनियरिंग और विश्वविद्यालयों में पहले से ही शिक्षकों की कमी है।  आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों में 25 से 30 फीसद शिक्षकों के  पद खाली हैं।

  इसी प्रकार विश्वविद्यालयों में यह प्रतिशत <